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प्रेमम : एक रहस्य! (भाग : 27)




पुलिस हेडक्वार्टर देहरादून

मेघना जिसने फिलहाल यहां का चार्ज सम्भाला हुआ था वह अपनी चेयर पर मुँह लटकाए बैठी हुई थी। उसके शरीर पर लगे जख्म लगभग भर गए थे मगर दिल की चोट अब भी उसे तार तार किये जा रही थी। हालांकि पिछले दो तीन दिनों से कोई भी अप्रिय घटना नहीं हुई थी मगर जो पहले से घट चुकी थी उससे लोग बहुत बुरी तरह डर चुके थे। देहरादून मरघट की तरह नजर आ रहा था, सब के सब अपने घरों के भीतर, बाहर बस पुलिस के सिपाही ही दिखाई दे रहे थे। हालांकि कर्फ्यू अनिश्चितकाल के लिए लग चुका था मगर यह कोई स्थायी समाधान नहीं हो सकता, देर सबेर सभी इसका विरोध करना आरंभ कर ही देंगे, यही सब प्रशासन की चिंता बढ़ाए जा रहा था। मेघना अपने बालों को झटकते हुए सीलिंग पर लगे पंखे को निहारने लगी। आदित्य शायद कहीं और नियुक्त था, तभी लैंडलाइन की घण्टी बाजी, मेघना की तंद्रा भंग हुई।

"हेलो! असिस्टेंट इंस्पेक्टर मेघना हिअर!' फोन पर झपटते हुए मेघना ने कहा।

"अब वहां के हालात कैसे हैं मिस मेघना?" कमिश्नर का स्वर उभरा।

"कर्फ़्यू लगाए जाने के बाद से कोई अप्रिय घटना घटित नहीं हुई है सर! मगर जाने क्यों मेरा दिल घबरा रहा है।" मेघना ने उत्तर देते हुए अपनी आशंका व्यक्त की।

"आप अपने दिल को काबू में रखिये मिस मेघना! इन सबके पीछे जो भी है वो मुझे जल्दी से जल्दी सलाखो के पीछे चाहिए।" कमिश्नर का भर्राया हुआ स्वर उभरा।

"सर! एक बात बताइए जब माहौल इतना कुछ खास नहीं बिगड़ा था तब तो आपने अपना एटम बम भेज दिया था, अब हालात इतने बुरे हैं तो आप मुझे कह रहे हैं कि मैं संभालू? कैसे?" मेघना ने व्यंग्यपूर्ण शब्दों से कहा।

"ये आपकी ड्यूटी है मिस मेघना! अगर आपको डर लगता है तो अपनी वर्दी पर लगे सितारे नोंच दीजिए और फिर आराम से अपने घर जाइये।" कमिश्नर काफी भड़के हुए स्वर में बोला।

"वो तब भी मेरी ड्यूटी थी सर! और मैं तब भी हालात कब में कर लेती। कम से कम इतने बुरे तो नहीं होते!" मेघना ने तंज कसा।

"जहाँ तक मैं जानता हूँ तुम अरुण की बड़ी प्रसंसक रही हो।"

"जी सर! मगर उसके काम की, उसके तौर तरीकों की नहीं।" मेघना ने सीधे शब्दों में जवाब दिया।

"उसके यही तौर तरीके हैं जो उन वहशियों को रोक पाते हैं मिस मेघना!"

"मतलब!"

"वो अब भी अपना काम कर रहा है। चाहे उसके जिस्म पर वर्दी हो या न हो, उसके दिल में जो जवालामुखी है वह हमेशा देश के दुश्मनो पर गाज बनकर बरसता है।"

"आप कहना क्या चाहते हैं सर!"

"यही कि तुम अब इंस्पेक्टर के पद पर प्रोमोट की जाती हो। मैंने बहुत सोच समझकर यह फैसला लिया है, उम्मीद है तुम अपनी ड्यूटी बहुत अच्छे से अदा करोगी। याद रखना हमारी जान से पहले इस वतन की आन, आबरू और उन मासूमो की जिंदगी आती है जिनकी रक्षा का हम वचन लेते हैं। जय हिंद!"

"जय हिन्द सर!" मेघना ने भर्राए गले से कहा।

'कभी कभी राम सर का कुछ समझ नहीं आता! कब कैसा मूड हो जाये पता नहीं। पर उनका कहा एक एक शब्द सही है।' सोचते हुए मेघना वापस अपनी चेयर पर बैठ गयी।

"रामनाथ! जरा वो फाइल्स ले आओ!" एक कांस्टेबल को आवाज देते हुए कहा।

"जी मैडम!" कहते हुए वह अधेड़ उम्र का व्यक्ति थोड़ी ही देर में आठ-दस फाइल्स वहीं लाकर रखता है।

"थैंक यू! ये आदित्य अब तक नहीं आया क्या?" मेघना ने बाहर की ओर देखते हुए कहा।

"नहीं मैडम वे तो शाम के गए हैं तब से नहीं लौटे!" रामनाथ ने जवाब दिया।

"ठीक है रामनाथ! आप जाओ!" कहते हुए मेघना फ़ाइल खोलकर बैठ गयी।  "एक मिनट आज तारीख क्या है?"

"चौबीस मार्च मैडम! क्या हुआ?" रामनाथ ने जवाब दिया।

"कुछ नहीं! आप जाओ!" मेघना ने जबर्दस्ती की मुस्कान लाते हुए कहा। "ओह माय गॉड! मैं ये डेट कैसे भूल गयी, इन दिनों दिमाग पर कुछ ज्यादा ही प्रेसर पड़ने लगा है शायद! जल्दी ही वो दिन आने वाला है!

हे भगवान! मैं ऐसे हाल में आदित्य को कैसे रोकूँगी! कुछ ही दिनों में वो तारीख आने वाली है जिस दिन सिया का इंतकाल हुआ था। पता नहीं कौन से दरिंदो ने उसकी हँसती खेलती बगिया उजाड़ दी। पहले परिवार और फिर उसकी खुशी की इकलौती वजह सिया! उस मासूम सी जान ने किसका क्या बिगाड़ा था जो उसके साथ ये सब हो गया। तब से जैसे ही यह दिन आने लगता है आदि बुरी तरह पागल होने लगता है, पिछली बार को तो सम्भाल लिया मगर इस बार कैसे! वह अपने पुराने जख्म भरने ही नहीं देना चाहता। उफ्फ जाने कहाँ होगा वो! फोन भी ऑफ आ रहा है, घर पे वो हो नहीं सकता, मगर मुझे विश्वास है ऐसे में भी मेरा दोस्त अपने फर्ज को तवज्जो देगा और वापिस लौट आएगा। मुझे भी इस केस की प्रॉपर स्टडी करनी पड़ेगी। ड्यूटी फर्स्ट!' अपने विचारों में खोई मेघना जैसे नींद से बाहर आई, वह पुनः फ़ाइल के पन्नो को पलटने लगी।

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ब्लैंक का गुप्त ठिकाना!

चार पाँच नकाबपोश अरुण को बुरी तरह जकड़कर खींचते हुए जा रहे थे। कर्नल की आँखों में अजब सी चमक थी, अरुण पिछले कई दिनों से खाना न खाए होने के कारण बहुत बुरी तरह पस्त नजर आ रहा था मगर उसकी आंखें अब भी किसी ज्वालामुखी की भांति दहक रही थीं। काफी देर तक चलने के बाद वे एक ऐसे कक्ष में पहुँचे जहां विभिन्न प्रकार के अत्यंत प्राचीन एवं आधुनिक हथियार रखे हुए थे, जिनमें मुख्यतः यातना देने वाले औजार ही थे, शायद यह कोई यातना कक्ष था।

"अब तुम्हें ब्लैंक और बुलैरिश आर्मी से टकराने ऐसा अंजाम भुगतना पड़ेगा जिसके बारे में सोचकर तेरी साथ पुश्ते भी काँप जाएंगी!" अरुण के हाथों में मोटी जंजीर कसते हुए कर्नल में खूंखार स्वर में कहा। पीछे एक विशाल मशीन नजर आ रही थी जिसमे एक बड़ा सा गियर लगा हुआ था, उसके बड़े बड़े नुकीले दांते थे, यह चैन उसी से जुड़ी हुई थी।

"सात पुश्तों कांपेगी जरूर मगर अरुण की नहीं! तुम सबकी!" अरुण के चेहरे पर एक खूंखार सी मुस्कान सज गयी।

"हाहाहा..! साला खुद अल्लाह को प्यारा होने जा रहा है और हमको धमकी दे रहा है। हँसो रे! क्या मस्त जोक मारा इसने, लगता है इसका बाप पक्का कॉमेडियन था हाहाहा…!" कर्नल के साथ सभी जोर जोर से हँसने लगे। कर्नल का हाथ एक लीवर पर दबा, एक क्रेन की हुक की संरचना का छोटा औजार अरुण की ओर बढ़ा।

"अगर ब्लैंक से पहले तुम्हीं मरना चाहते हो तो बड़े शौक से…!" एक एक शब्द चबाकर कर बोला था उसने, उसकी आंखों में सिर्फ तांडव दिखाई दे रहा था।

"चलो रे! कहते हैं मौत के वक़्त इंसान पागल हो जाता है, और ये तो पहले से ही सनकी है हाहाहा…!" कहते हुए कर्नल ने अरुण के चेहरे पर जोरदार किक मारा।

"मौत के वक़्त इंसान जरूर पागल हो जाता है कर्नल! मगर मौत किसकी?" अपने हाथ में बंधी जंजीर को उस हुक में फँसाते हुए अरुण तेजी से उछला। उसने दोनों पैरों को जोड़ते हुए कर्नल के सीने पर जोरदार लात जड़ दिया,  कर्नल इस अप्रत्याशित हमले के लिए तैयार नहीं था वो लहराते हुए एक दूसरी मशीन से जा टकराया। यह देखते हुए बाकी के सभी नकाबपोश उसकी ओर बढ़े।

"खत्म कर दो इसे!" तेजी से चीखते हुए एक नकाबपोश आगे बढ़ा। हवा में लटका हुआ अरुण किसी तरह अपने हाथ अपने जूते तक पहुँचाना चाहता था।

"फालतू की कोशिशें छोड़ दे बच्चे! तेरा खंजर वहीं हॉल में गिरा हुआ है, अगर तुझे तू दरिंदा लगता है तो यहां हर किसी ने दरिंदगी में पी.एच.डी.  कर रखी है हाहाहा…! अगर विरोध करना छोड़ दे तो बड़े प्यार से मरेगा।" अब तक कर्नल अपने स्थान से उठ चुका था। सभी नकाबपोश उसपर लगातार घूसे बरसाए जा रहे थे।

"क्या मच्छर मार रहे हो?" अरुण के मुँह से एक आह तक न निकली, उसने अपने जबड़े को भींच लिया था।

"छोड़ो! अलविदा बच्चे!" कहते हुए कर्नल ने एक दूसरा लीवर ऑन किया, एक लंबा सा आरा कर्टर अरुण की ओर बढ़ने लगा। कर्नल का हाथ एक दूसरे लीवर पर दबा, अब वह गियर भी चालू हो चुका था, अरुण ऐसी स्थिति में था कि वह चाहे कुछ भी करे मरना था, ऐसे में अगर वो इससे बच भी जाता तो तो बाहर ब्लैंक की बुलैरिश आर्मी से बच पाना सम्भव नहीं था। अब तक आरा कर्टर अरुण के बिल्कुल जा चुका था, अरुण का खुद को हिला पाना भी मुश्किल नजर आ रहा था। अगले ही पल लहू के फव्वारे से वह कमरा नहा गया।

"हाहाहा…!" कर्नल जोरो से हँसा, कुछ बूंदे उसके कपड़ो पर भी पड़ी थी। मगर उसकी नजर कमरे के अंदर पड़ी तो आँखे फ़टी की फटी रह गईं। अरुण अब भी हवा में लटक रहा था उसके उल्टे हाथ में एक नकाबपोश का सिर था, जिसको उसने उल्टे पैर से मारते हुए कर्नल की ओर उछाल दिया।

"जब इतनी सारी मशीने लगा रखे हो तो तुम्हें यहाँ से चले जाना चाहिए था।" अरुण का चेहरा खून से नहाया हुआ था। कर्नल ने गौर किया कि उसके हाथ आजाद थे, और उसने उन्ही बेड़ियों की मदद से उस नकाबपोश को आरा कर्टर के सामने ला खड़ा किया। यह सब इतना जल्दी हुआ कि किसी को कुछ भी समझ न आया, आरा कर्टर दूसरा चक्कर मारते हुए पुनः अरुण की ओर बढ़ने लगा।

"अब तेरा खेल खत्म इंस्पेक्टर!" कर्नल गुर्राया, उसके हाथों में अरुण की ही पिस्टल चमकने लगी।

आरा अरुण के बिल्कुल पास पहुँच चुका था, मगर जैसे अरुण उसकी ओर से बेफिक्र था, वह हल्के से झुका, वह हुक एक ओर लहराया, आरा कर्टर हुक के मोटे लोहे को काटता हुआ गुजर गया। अरुण अब आजाद हो चुका था, मगर उसके बाएँ हाथ में अब भी वही चैन बंधी हुई थी, वह तेजी से एक ओर उछला, क्रेन का वह मोटा हुक एक नकाबपोश की खोपड़ी में धंस गया। एक नकाबपोश अपनी पोज़िशन लेते हुए अरुण पर फायर करने लगा, अरुण ने अपने हाथ में बंधी चैन को जोर से झटका दिया, अगले ही पल सभी लीवर अपने आप ही ऑन हो गए, शायद उनके फंक्शन में कोई गड़बड़ी आ गयी थी।

वह नकाबपोश एक मशीनी खाँचे के पीछे छिपकर फायरिंग कर रहा था, अगले ही पल ऊपर रखा इम्पैक्ट लोड उसके ऊपर धड़ाम से गिरा, लहू के छींटे उस कमरे को लाल किये जा रहे थे, एक नकाबपोश लोहे का एक भारी गार्डर अरुण की ओर दौड़ा, अरुण ने चैन को लहराया, हुक उसके पैरों में फंसी और वह फिसलकर गिर पड़ा, उछलते हुए वह गार्डर कुछ ऊपर तक गया फिर उसके सिर को चकनाचूर कड़ते हुए जमीन में धंस गया। यह विभत्स दृश्य देखकर उन दरिंदो के भी पसीने छूट गए। सभी बड़ी तेजी से कमरे से बाहर आने लगे।

"या खुदा! ये आदमी है या शैतान!" कर्नल बुरी तरह से चीखा।

"शैतान! जिसे तुम जैसे नरक के हैवानों को सजा देने के लिए डायरेक्ट यमराज से अपॉइंटमेंट मिला है, अब वहीं जाकर उसी से पूछना, अगर किसी तरह वहां पहुँच गया तो।" चेन्स को अपनी कलाई में लपेटते हुए अरुण बोला, अब हुक उसके काफी पास था, जो जमीन पर घिसटता हुआ एक नकाबपोश के सिर में घुसा आगे बढ़ रहा था।

"कौन हो तुम?" कर्नल की जुबान लड़खड़ाने लगी, वह एक ओर दीवार से चिपककर खड़ा था।

"मौत का कोई नाम नहीं होता कर्नल! मैं बस एक सवाल पूछुंगा जिसका जवाब तय करेगा कि तुझे मरना है या बहुत बुरी मौत मरना है!" अरुण जैसे अंगार उगलते हुए बोला। अचानक  कर्नल की आँखों में खुशी की लहर दौड़ गयी, अरुण के पीछे से एक नकाबपोश ने नुकीले खंजर से हमला करने आगे बढ़ा, अगले ही पल अरुण पलटा, कर्नल के पलक झपकने से पहले वह नकाबपोश अरुण के कदमो में था, उसका सिर फट चुका था, उसके लहू से अरुण का बायाँ पैर नहा चुका था।

"जब शेर भेड़िये का शिकार कर रहा हो तो कुत्तों को बीच में नहीं कूदना चाहिए।" कहते हुए उसने चैन बाहर खींच लिया, खून की कुछ बूंदे कर्नल पर भी पड़ी।

"न..नहीं!" कर्नल बुरी तरह मिमियाने लगा।

"यही पी.एच.डी. है तेरी दरिंदगी में? अरुण ने तो अभी ए बी सी डी पढ़ना शुरू किया है!" उसकी आंखों में झाँकते हुए अरुण ने कहा।

"तुम्हें क्या चाहिए?" कर्नल मिमियाया।

"बदला! उन मासूमों के जान के बदले तुम जैसे सभी दरिंदो की जान!" अरुण के अंदर का ज्वालामुखी लावा बनकर बाहर आने लगा। "ब्लैंक का असली ठिकाना कौन सा है?"

"यही है!" गिड़गिड़ाते हुए वह घुटनो पर बैठ गया।

"झूठ मत बोल! मैं दुबारा नहीं पूछूँगा।" अरुण ने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा। तभी कर्नल अपनी चाल चल गया, उसने झुककर उस नकाबपोश के हाथ से खंजर उठा लिया था, इससे पहले अरुण कुछ समझ पाता, उसने अरुण का पैर खींचते हुए दोनों हाथों से मजबूती से खंजर पकड़े उछला, उसका निशाना अरुण की छाती थी मगर ऐन वक्त पर अरुण सम्भला, पर कर्नल का वार पूरी तरह खाली नहीं गया, खंजर अरुण के बाएं कंधे को चीरते हुए काफी भीतर तक धंस चुका था। कर्नल के आँखों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी जो।अगले ही पल पीड़ा के अश्रुओं में बदल गयी, उसका सिर बुरी तरह फट चुका था, अरुण के चेहरे पर विचित्र विजयी मुस्कान थी, उसने चैन को खींचा, कर्नल लुढ़कते हुए दूर जा गिरा, उसकी चींख पूरे हॉल में गूंज गयी।

"मैं जानता था साला कोई न कोई चुतियापा भरा हरकत जरूर करेगा। नरक में मिलेंगे बच्चे!" अरुण ने अपने कंधे से खंजर निकालते हुए उसकी गर्दन के बीचोंबीच दे मारा फिर बड़े प्यार से ऊपर माथे था खींचता आया, कर्नल की हृदयभेदी चीखें उस वीरान जगह में गूंजती रही। अरुण यहीं नही रुका वह उसके माथे के बीचोंबीच खंजर की मदद से एक गोला बनाने लगा फिर फचाक से दे मारा। फिर वह वहां से उठा और खंजर पर जोरदार ठोकर मारा, खंजर माथे को चीरता हुआ दूसरे को निकलने को हो गया। कर्नल की  घुटी घुटी सी चीख निकली यह उसकी आखिरी थी। अरुण ने घृणा भरी नजरों से देखते हुए उसके मुंह पर थूक दिया।

"मैं आ रहा हूँ ब्लैंक! मैं आ रहा हूँ!" कहते हुए अरुण उठा, मगर उसके पैरों में उसका साथ देने से इनकार कर दिया, कई दिन की कमज़ोरी, अत्यधिक क्रोध और इतना अधिक खून बह जाने के कारण वह बुरी तरह पस्त हो चुका था। अरुण की आंखों के सामने अंधकार छाने लगा, वह खुद को होश में रखने की कोशिशें कर रहा था मगर नाकाम रहा।

क्रमशः…..


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3 Comments

अच्छा भाग था।👌 इसे पढ़कर हम यही कहना चाहेंगे कि लिखित में था तो पढ़ लिये हम! पर मूवी में होता अगर.…तो नहीं देख पाते। क्योंकि पढ़ने पर उतना असर नहीं होता जितना लड़ाई झगड़ा और खून खराबा देखने पर होता है। और यह कहानी यह बात भी दिखा रही अच्छे से...कि असली ताकत इंसान के मन में होती है परिस्थितियों में नहीं! तभी तो इन आतंकियों ने ठान रखा है कि मौत को कुबूल लेंगे पर मुँह नहीं खोलेंगे...नतीजा मौत से भी बदत्तर हालत होने के बाद भी...आतंकियों ने मुँह नहीं खोला। यह भाग भी एक अच्छा ज्ञान दे रहा...कि ताकत हमारे भीतर 'हमारे अवचेतन' 'हमारी आत्मा' में होती है हमारी परिस्थितियों में नहीं! वाकई अगर इंसान चाह ले तो वह परिस्थितियों के सामने झुकने की जगह परिस्थिति को बदलने पर मजबूर कर देगा।

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Fauzi kashaf

02-Dec-2021 10:34 AM

Good

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Zaifi khan

30-Nov-2021 09:12 PM

Bht umda

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